तिलस्मी किले का रहस्य भाग_ 15
कहानी _* *तिलस्मी किले का रहस्य**
भाग _15
लेखक_ श्याम कुंवर भारती
प्रताप और सुरभी को अपने तीर धनुष के घेरे में लेकर उन दोनो साधुओं ने एक दूसरी झोपड़ी में ले आए जहा एक बहुत ही वृद्ध साधु ध्यान साधना में लीन था।उनके पीछे भेड़िया भी चौकन्ना मुद्रा में आकर खड़ा हो गया।
प्रताप चाहता तो अपने भाले के बल पर उन दोनो साधुओं को अपने कब्जे में ले सकता था लेकिन वो जानना चाहता कि आखिर ये लोग उसके साथ करना क्या चाहते हैं।
थोड़ी ही देर में उस साधु ने अपनी आंखे खोल दिया । यहा तक आज तक कोई भी नही पहुंच पाया था लेकिन तुम दोनो पहुंच गए बड़ा आश्चर्य है ।तुम दोनो कोई साधारण लड़के लड़की नही हो ।तुम्हारे साथ एक खूंखार मांसाहारी भेड़िया बिना तुम दोनो को कोई नुकसान पहुंचाए चला आया यह और भी ताज्जुब की बात है।अपनी आंखे खोलते ही उस साधु ने उन दोनो को देखते हुए कहा।
प्रताप ने उस साधु को प्रणाम कर कहा बाबा हम दोनो रास्ता भटक गए हैं।हमे अपने घर जाना है।आप हमारी मदद कीजिए।
प्रताप को देखकर सुरभी ने भी उस साधु को प्रणाम किया ।
तुम दोनो का जहा तक सकुशल आ जाना कोई साधारण बात नही है।में सालो से यहां कुटिया में किले में छिपाए सबसे बड़े खजाने के लिए तपस्या कर रहा हूं ।
अगर तुम दोनो मुझे खजाना तक पहुंचाने में मेरी मदद करो तो हम तुम दोनो को घर वापस जाने में मदद कर सकते हैं।उस उस साधु ने कहा ।
ओह अच्छा तो आप साधु के भेष में डाकू है ।जरा अपनी उम्र तो देखिए । भला इस उम्र में खजाना लेकर क्या करेंगे।प्रताप ने व्यंग्य करते हुए कहा।
अपनी जुबान पर लगाम दो बालक तुमसे जो कह रहा हूं उसका जवाब दो वरना तुम दोनो बेमौत मारे जाओगे।
देखिए हम दोनो न किले के बारे में जानते हैं और न किसी खजाने के बारे में।अगर जानते तो उधर भटक कर कैसे आ जाते । खजाना लेकर खुद भाग नही जाते ।प्रताप ने जवाब दिया।
हो सकता है तुम सही कह रहे हो लेकिन इतने भूल भुलैया वाले तहखाने और सुरंगों से होते हुए तुम दोनो का यहां तक आना मेरे लिए एक उम्मीद की किरण हो सकता है ।क्योंकि तुम दोनो अगर साधारण इंसान होते तो जिंदा आ ही नहीं सकते थे।
मैं किले के चप्पे चप्पे से परिचित हूं। यहां तक कि सुरंग और तहखाना मुझसे छिपा हुआ नही है और न इसका तिलस्म ।किसी अनजान और साधारण इंसान का जिंदा बच कर यहां तक आना मुश्किल ही नहीं असंभव है।फिर भी तुम दोनो जिंदा आ गए।
वो सब हम नही जानते बाबा बस आपसे मेरा निवेदन है आप हम दोनो को किले से बाहर जाने का रास्ता बता दे।खजाना से हमे कोई लेना देना नहीं है।प्रताप स्पष्ट रूप से कहा।
मेरी मर्जी के बिना अब तुम दोनो कही नही जा सकते इसलिए मेरी बात मानो हम तुम्हे खजाना मिलते ही तुम्हे बाहर निकलने का रास्ता बता देंगे।उस साधु ने धमकाते हुए कहा।
प्रताप अभी कुछ जवाब देता सुरभी ने उसके कान में धीरे से कहा _ तुम इनकी बात मान क्या नही लेते ताकि इनकी मदद से हम दोनो बाहर निकल सके।
ये लोग लालची और अपराधिक प्रवृत्ति के मालूम होते है । हो सकता है खजाना का पता बताते ही ये लोग हमे जान से मार दे और उस धन का उपयोग गलत काम या देश विरोधी कार्य ने करे।
अब यह किला सरकार के अंदर में है इसलिए यहां के हर चीज पर सरकार का हक है ।इसलिए अभी ना बोलकर इनकी आगे की कार्रवाई देखते हैं और इनसे मोल भाव करते है।प्रताप ने भी धीरे से कहा।
जल्दी बताओ तुम्हारा क्या जवाब है ।इस साधु ने डांटकर पूछा । आपस ने खुसुर फुसुर कर रहे हो ।
बाबा बिना आपकी मदद से हम लोग बाहर तो निकल नही सकते इसलिए हमे सोचने का मौका दे ।इस बार सुरभी ने कहा।
ठीक है सोचो और जल्दी बताओ।लेकिन कोई चालाकी मत करना तुम दोनो वरना मेरे शिष्य तुम्हे मार डालेंगे।
पहले इन दोनो को बोलिए अपना तीर धनुष हटा ले घबड़ाहट आए भय से दिमाग काम नही कर सकता है।प्रताप ने कहा ।ठीक है इन दोनो को आजाद छोड़ दो ताकि ये दोनो जल्दी जवाब दे सके।
उन दोनो साधुओं ने अपना तीर धनुष हटा लिया।
प्रताप और सुरभी कुटिया के एक कोने ने जाकर बात करने लगे।
मेरे ख्याल से शायद साधु बाबा ने केवल खजाने के बारे में सुना होगा और उसकी तलाश ने भरकर यहां तक आकर कुटिया बनाकर तीनो रह रहे हो और इनको किले के तहखाने और सुरंगों के नक्शे के बारे में पता न हो ।हम दोनो से खजाना ढूंढवाने के लिए झूठ बोल रहा हो।
हो सकता है वो सच कह रहे हो सुरभी ने कहा।
अगर वो सच कह रहे है तो आजतक खजाना ढूंढ क्यों नही पाए।।प्रताप ने पूछा ।
हो सकता है वे सचमुच खजाना नहीं ढूंढ पाए हो ।सुरभी ने कहा ।
ठीक है तो चलो उनसे शर्त रखते हैं की वे पहले हमे किले से बाहर निकलने का रास्ता बताएं फिर हम लोग इनकी मदद करेंगे ।अगर नही माने तो इनसे पीछा छुड़ाकर यहां से निकलना होगा।प्रताप ने अपनी योजना बताया।
चलो ठीक है इसके अलावा कोई ऊपर भी नहीं है।अब केवल मरो या करो की नौबत आ गई है।सुरभी ने चिंतित होकर कहा।
बाबा हम दोनों आपका साथ देने को तैयार है लेकिन हमारी एक शर्त है।प्रताप ने उस साधु के पास जाकर कहा ।क्या शर्त है साधु जी ने पूछा।
पहले आप हैं दोनो को किले से बाहर निकलने का रास्ता बताएंगे फिर हम दोनो आपको खजाना खोजने में मदद करेंगे।
ताकि तुम दोनो धोखा देकर भाग जाओ।उस साधु ने गुस्से में कहा।
नही बिलकुल नहीं हम भागेंगे नही बल्कि यह जानना चाहते है की क्या सचमुच आपको किले के बारे में जानकारी है या यूंही हमे बरगला रहे हैं अपना काम निकालने के लिए ।या हमे खजाना मिलने के बाद मारना तो नही चाहते है ।
बस हम दोनो अपनी सुरक्षा की गारंटी चाहते हैं प्रताप ने वेधडक अपनी बात कह दिया।
तुम दोनो बहुत होशियार हो। लेकिन हम तुम्हारी शर्त नहीं मान सकते ।तुमको मेरी बात माननी ही पड़ेगी।तभी प्रताप ने अपने भाला की नोक वाला हिस्सा पकड़ा और लाठी की तरह जोर से घुमाकर उन दोनो साधुओं के पैरो पर चला दिया दोनो अचानक हमले से संभल नहीं पाए और जमीन पर गिर पड़े।
प्रताप ने सुरभी का हाथ पकड़ा और उसे खिंचता हुआ उसी कुटिया की तरफ भागा जिधर से वो आया था
वहा पहुंचते ही उसने उस सुरंग का ढक्कन खोला और नीचे सीढ़ियों पर उतर गया फिर सुरभी को नीचे खींच लिया और ढक्कन अंदर से बंद कर दिया ।
उस साधु ने चिल्लाकर कहा जल्दी उठो और उन दोनो की पकड़कर ले आओ वे दिनों जाने न पाए ।वे दोनो हमारे बारे में जान चुके है हमारे लिए खतरा हो सकते है । दोनो किसी तरह उठ खड़े हुए और दूसरी कुटिया की तरफ भागने लगे।लेकिन तब तक भेड़िया उन पर टूट पड़ा और बुरी तरह से उन्हें घायल करने लगा।
उसमे से एक ने एक मोटी से लकड़ी उठाई और भेड़िया पर लपका लेकिन भेड़िया वहा से छलांग लगाकर भाग खड़ा हुआ।
अंदर सुरंग में प्रताप और सुरभी बेतहासा भागते जा रहे थे।थोड़ी देर में वही दो राहा मिला ।
प्रताप ने कहा यह रास्ता तो झरना की तरफ जाता है। हम लोग थोड़ी देर पहले इससे होकर आए थे ।चलो दूसरे रास्ते से चलते है शायद यह किले के अंदर जाता हो इतना कह कर दोनों उस सुरंग की ओर मुड़ गए और भागते चले गए ।
शेष अगले भाग _16 में
लेखक_ श्याम कुंवर भारती
बोकारो झारखंड
मॉब.9955509286
Madhumita
23-Jan-2024 07:18 PM
Nice
Reply
Varsha_Upadhyay
23-Jan-2024 05:30 PM
बहुत खूब
Reply
Gunjan Kamal
23-Jan-2024 03:56 PM
👏👌
Reply